शुक्रवार, 15 मई 2009

याद आती है बचपन की बारिश
जब लरज उठती थी
बँसवारी हरहराती बूंदों से
और सागौन के पत्तों से फिसलता पानी
बेसब्र होकर चूमता था ज़मीं
मैं झूठे के काम बहाने पार करती थी आँगन
बिना बताये किसे भी
भीगती थी छत पर
रात जब आती थी घटा टॉप होता था
बिजली जब कौंधती थी मै दम साध लेती थी
और खोजती थी आकाश बिजली की कौंध में
आज वही बारिश है पर नहीं लरजती है बँसवारी
मै पार नहीं करती आँगन भीगने के डर से
सागौन के पत्तों से जाने कब फिसल जाता है पानी
भूल सी गई है छत
घटा टॉप दिखाई देता है आसमान
और उसपर बिजली जब कौंधती है मै दम साध लेती हूँ की होगा क्या अब आगे
नहीं खोज पाती थोडा सा आसमान अपने लिए

सोमवार, 11 मई 2009

मन होता है की कितना कुछ कह जाएँ खुद से
अपने से बहुत सी बातें करनी होती हैं
वे बातें जिन्हें हम किसी तक पहुंचा नहीं पाते
वे बाते जिन्हें हम हर वक़्त खुद में जीते हैं
। कुछ लोग जो हमारे चेहरों के आस पास होते हैं
हमारे चेहरों में अपने चेहरे छोड़ जाते हैं
जबकि उनसे हमारा कोई नाता नहीं होता हमारे स्पर्शों में अपने स्पर्श छोड़ जाते हैं
कहीं न कही . वे लोग जो अपने मैले से आवरण में होकर भी हम पर सीधा वार
करते हैं ।
भले ही हम न माने की हम चोटिल हुए हैं उनके वार से ।
भले ही हम पहन लें धुले कपडे इस्तरी किये हुए
हम शर्मिंदा हैं कहीं न कहीँ

. . तभी ये होता है की
हमें आइना देखना पड़ता है बार बार .
हम बार बार ठीक करते हैं अपना चेहरा लेकिन वह ठीक नहीं होता है.
हम छुपाते हैं खुद को खुद से ही.
खुद से दूर जाने के लिए छुपाते हैं भीड़ में .
हम अपराधी हैं तमाम अपराधों के।
भले ही हमने न किये हों वे अपराध
मगर हम उनमें शामिल हैं कहीं न कहीं ।!!!!

बुधवार, 6 मई 2009

आप सब लोगों ने मेरी कविता को पसंद किया और अपनी टिपण्णी लिखी इसके लिए धन्यवाद. भविष्य में भी इसी तरह मेरा ब्लॉग पढ़ केर टिपण्णी करते रहें ।dhanyawad

सोमवार, 4 मई 2009

यह सिन्दौरा मेरा है .
मैं इसी के साथ यहाँ आई थी
कहा गया था की बहुत संभालना है इसे मुझे
सिर से लगाकर ही पीना है पानी
और फिर छूने हैं सबके चरण
य भी कहा की दीवारों के भीतर तक है मेरा घर
कहते थे की अब मैं बड़ी हूँ और जिम्मेदार भी
मैं भी रखती थी सिन्दौरा बक्से में और लगाती थी एक ताला उसमें
लेकिन अचानक कल कुछ हुआ
एक मेरे गौरेया आँगन में आई
और मेरी पलकों पर सोये गीत ले भागी
मैं भागी उसके पीछे और भूल आई ताला वहीँ पर
अब बक्सा खुला है .
कोई क्या चुराएगा ! क्या मेरा सिन्दौरा ?
अगर चुरा भी ले गया
तो क्या ले जायेगा
!
मैं अपने गीत वापस मांग लाइ हूँ उस गौरेया से !!