
क्या है औरत की देह
कि
वे देह विमर्श करते हैं
क्या वे चाहते हैं
खोजना
कि
औरत को देह बनाने में जुटते हैं
क्या वे जानते नहीं
कि
पल रही है सृष्टि
उसी कि कोख में
कि उसके स्तन सींचते हैं प्राण
कि वह जब करती है प्यार
तो देखती नहीं है
आगे पीछे
और होती है
सर्वहारा सी
और उसी कि देह पर
होता है विमर्श
क्या है उसकी देह
कि
जब तनती है
तो हों जाती है आकाश
और जब भीगती है
तो जैसे धरती
देती है तो ईश्वर सी
और मांगती है क्या !
वे थाह नहीं पाते हैं
और करने लगते हैं
विमर्श
लिखने लगते हैं शब्द
उसी देह पर
और पढ़ने लगते हैं देह बार बार
और फिर करते हैं
विमर्श!! विमर्श!! विमर्श !! और सिर्फ विमर्श !!
कि
वे देह विमर्श करते हैं
क्या वे चाहते हैं
खोजना
कि
औरत को देह बनाने में जुटते हैं
क्या वे जानते नहीं
कि
पल रही है सृष्टि
उसी कि कोख में
कि उसके स्तन सींचते हैं प्राण
कि वह जब करती है प्यार
तो देखती नहीं है
आगे पीछे
और होती है
सर्वहारा सी
और उसी कि देह पर
होता है विमर्श
क्या है उसकी देह
कि
जब तनती है
तो हों जाती है आकाश
और जब भीगती है
तो जैसे धरती
देती है तो ईश्वर सी
और मांगती है क्या !
वे थाह नहीं पाते हैं
और करने लगते हैं
विमर्श
लिखने लगते हैं शब्द
उसी देह पर
और पढ़ने लगते हैं देह बार बार
और फिर करते हैं
विमर्श!! विमर्श!! विमर्श !! और सिर्फ विमर्श !!