लमहा -लमहा
अब वक़्त आ गया है कि तुम उठो और अपनी ऊब को आवाज़ दो
सोमवार, 2 फ़रवरी 2009
ठंढ
में
हाथ
सेंकने
जैसा
है
औरत
पर
बात
करना
जलती
लकडियाँ
बुझीं
तोह
नहीं
ये
देखना
है
बस।
वो
यूँ
की
चूल्हा
जलाता
रहे
,
सब
सुलगता
रहे
पतीला
धीरे
धीरे
गरम
होता
रहे
और
सारी
बात
केवल
इस
बात
तक
रहे
की
बाहर
कुछ
भी
उफनने
न
पाए
भीतर
चाहे
जितना
जलता
रहे
.
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