फूल पीले मत बटोरो
झरने दो !
प्रियतम की छुवन
से खिले थे
से खिले थे
दहने दो !
प्रिय कब फिर आएंगे
कौन जानता है !
आएगा कब फिर बसंत
कौन जानता है !
अभी तो यादें पुलकी हैं
साँसों में साँसें बहती है !
आग देह में जलती
तभी सूरज भी तो
मद्धिम है
पीली है
उसकी कांति
तभी सूरज भी तो
मद्धिम है
पीली है
उसकी कांति
पूरी काली है रात
ताप को जलने दो
फूल पीले मत बटोरो
झरने दो !
तभी तो पीला है सुरज
जवाब देंहटाएंमद्धिम है उसकी कांति
पुरी काली है रात
ताप को जलने दो
पीले फ़ुल मत बटोरो
झरने दो
बेहतरीन, कविता बिना शीर्षक की है, कृपया शीर्षक दे दिया करें-आभार
कब तक युवा रहेगा बसंत?
चिट्ठाकार चर्चा
adbhutaas kavita... jeevan ki jivantata ko ukerti rachna...
जवाब देंहटाएंkuchh samay nikal kar is par bhi gaur karein...
http://ab8oct.blogspot.com/2010/01/blog-post_20.html
achha lage to humein follow karne ka kast karein...
फूल पीले मत बटोरो
जवाब देंहटाएंझरने दो
प्रियतम की छुवन
से खिले थे
दहने दो .....
सुंदर शब्दों से रची ..... सुंदर रवानी है इस रचना में .... बसंत के आगमन पर दिल में उठते जज्बातों का अच्छा चित्रण आयी .. ....... आपको वसंत पंचमी की बहुत बहुत शुभकामनाएँ .........
फूल पीले मत बटोरो
जवाब देंहटाएंझरने दो !
प्रियतम की छुवन
से खिले थे
दहने दो !!!!!!!
बड़ी कसक उठती है ,कचोट छा जाती है ,जिन पीले फूलों में अपने हिस्से का पूरा वसंत आया था ,अब वह झरने लगा है ,उसे तो झरना ही है !पर मन को कैसे समझाएं .....इसी तरह वसंत आता रहे जाता रहे ! अनंतशुभकामनाओं के साथ ....!
मुक्ता शर्मा (पमपम )ने कहा --
जवाब देंहटाएंप्रज्ञा जी ! आपकी कविता बहुत बहुत अच्छी लगी, वसंत के आते ही पीले फूल प्रियतम के छुवन का अहसास करा ही देते हैं !धन्यवाद !
ACHCHI KAVITA... PRAGA JI... PHOOL PEELE MAT BATORO JHARNE DO... WAAH
जवाब देंहटाएंphoolon ko smritiyon mein sahej liya jaye to vasant ke aagman ki khushi dugni ho jaya karegi.
जवाब देंहटाएंkrishnabihari
वसंत गया ही कब ? वह तो नित नूतन है ...हर पल में है हर उर में है और हर उम्र में भी ...वसंत तो हमारी शिराओं में है धमनियों में है .
जवाब देंहटाएंसोचो तो हर लम्हा बसंत है और उलझो तो पतझड़ ..:) अच्छा लिखा आपने
जवाब देंहटाएंमुझे तो पीले फूलों की माला गूथनी है आपके लिए....
जवाब देंहटाएंbahut sundar rachna lagi./
जवाब देंहटाएंकालिदास से लेकर आज तक वसंत कवियों को लुभाता है। उदय प्रकास ने अपने ब्लॉग में निराला की वसंत पर लिखी कविता डाली है। उसे भी पढ़ें। आपको पसंद आएगी। आपकी कविता भी अच्छी है, लोक संस्कृति और वसंत का गहरा रिश्ता है। आपकी कविता सुन्दर है। थोड़ा अनुभूति को अपने आस पास से जोड़ें ..... धन्यवाद ...
जवाब देंहटाएंआएगा कब फिर बसंत
जवाब देंहटाएंकौन जानता है !
अभी तो यादें पुलकी हैं
साँसों में साँसें बहती है !
आग देह में जलती है........
बहुत सुंदर पंक्तियों के साथ ..सुंदर कविता .... आपकी कविता बाँध कर रखती है.... और दिल को छू जाती है.....
तभी सूरज भी तो पीला है
जवाब देंहटाएंमद्धिम है उसकी कांति !
पूरी काली है रात
ताप को जलने दो
kab phir aayega basant
bahut sunder abhivayakti
बहुत ही उम्दा..
जवाब देंहटाएंsunder bhav v kavyatmak chitran....badhai
जवाब देंहटाएंaapke comment se man gadgad ho gaya
जवाब देंहटाएंaur sab tarif kar hi rahe hai.. :)
गहन अनुभूति
जवाब देंहटाएंTerrific!
जवाब देंहटाएंKeep it (this simple stuf) UP!