हम खो गए
जैसे रास्तों पर
खो जाते हैं पावों के निशान
फिर खो
जाती है
स्फूर्ति सारी ताक़त सारा रस कहीं .!. .
जैसे खो जाते हैं बादल बरस कर
और फिर आकाश से ज़मीन की रह गुजर में
खो जाती है बूँद !
हम ऐसे खो गए जैसे खो जाती है बिजली
चमक्रकर बस एक बार
गरजकर रह जाती है
कहीँ दूर खोहों में पहाड़ों में !
हम खो गए जैसे खो जाती है
आवाज़ पुकार कर थक कर हार !
मगर फिर भी थे कहीं अनाम गुमनाम अनाकार
अरूप ही सही हम हवा की तरह
शायद नहीं थे
हम सिर्फ निशान भर, न ही बूँद भर.
न तो बस बिजली
न सिर्फ आवाज़ भर ...
शायद नहीं थे
जवाब देंहटाएंहम सिर्फ निशान भर, न ही बूँद भर.
न तो बस बिजली
बहुत सुन्दर और गहन रचना
हम हवा की तरह
जवाब देंहटाएंशायद नहीं थे
हम सिर्फ निशान भर, न ही बूँद भर.
bahut hi sunder kavita
सुन्दर अभिव्यक्ति!
जवाब देंहटाएंतुम्हें
जवाब देंहटाएंहम ढ़ूंढ ही लेंगे
आकाश में तारों के बीच
जमीन पर अंगारों के बीच
या फिर पाताल में पानी के जालों के बीच
तुम कभी खो नहीं सकते
बड़ी ही सुन्दर कविता।
जवाब देंहटाएंमंगलवार 27 जुलाई को आपकी रचना ... चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर ली गयी है .कृपया वहाँ आ कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ .... आभार
जवाब देंहटाएंhttp://charchamanch.blogspot.com/
हम ऐसे खो गए जैसे खो जाती है बिजली
जवाब देंहटाएंचमक्रकर बस एक बार
गरजकर रह जाती है
कहीँ दूर खोहों में पहाड़ों में !
बहुत सुन्दर रचना ! आपकी कल्पना बहुत सुन्दर है !
बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंहम ऐसे खो गए जैसे खो जाती है बिजली
जवाब देंहटाएंचमक्रकर बस एक बार
गरजकर रह जाती है
कहीँ दूर खोहों में पहाड़ों में !
हम खो गए जैसे खो जाती है
आवाज़ पुकार कर थक कर हार !..
इस तरह खोये हम कि खुद का पता भी ना पा सके ...
ना बूँद भर , ना सिर्फ आवाज़ भर ....!
सुन्दर ...!
अस्तित्व का सुन्दर चित्र.
जवाब देंहटाएंधन्यवाद.
kya bat hai prgya !
जवाब देंहटाएंyu kho kr bhi apna astitv mhsoos krna our use shbdo me pirona our ehsas bhi nirakar.gzab .
सुंदर और भावपूर्ण रचना ।
जवाब देंहटाएंkhone vaalon tum hmaare ujaas maahol ke hote kese kho jaaoge jhaan jaaoge hmen paaoge, bhut achchi prstuti he . akhtar khan akela kota rajsthan
जवाब देंहटाएंमगर फिर भी थे कहीं अनाम गुमनाम अनाकार
जवाब देंहटाएंशब्दों के चक्र व्यूह को भेदती हुई
सार्थक रचना ...
कविता बहुत अच्छी लगी... बहुत गहराई लिए हुए है....
जवाब देंहटाएंbehad khubsurat rachna likhi hai aapne .shukriya
जवाब देंहटाएंजीवन के लंबे सफ़र में कोई नही रहता ... सभी गुम हो जाते हैं ... निशान खो जाते हैं ....
जवाब देंहटाएंटीस सी नज़र आती है आपकी रचना में ... दर्द की लकीर ... शायद यही जीवन है ....
bahut sunder rachna! samvedansheel rachna!
जवाब देंहटाएंइतना मुश्किल तो नहीं खुद का खो जाना...पानी की एक बूँद मात्र नहीं जो अपना अस्तित्व खो दें.
जवाब देंहटाएंसुंदर कविता.मन में मंथन करती सी.
गहरी वेदना और अदम्य जिजीविषा की ओर इंगित करती हुई एक बहुत ही सुन्दर और सम्पूर्ण रचना ! बधाई एवं शुभकामनाएं !
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर...भावनाओं को उद्वेलित करती रचना.
जवाब देंहटाएंहम सिर्फ निशान भर, न ही बूँद भर.
जवाब देंहटाएंन तो बस बिजली
न सिर्फ आवाज़ भर ...
आकाश से जमीन की रह गुजर में जो दिखाई देते हैं, केवल वह ही नही बल्कि मनुष्य को उपर उठने के लिए अनगिनत ,अदृश्य और अनंत सम्भवनायें है ! इस सशक्त कविता के लिए बधाई !
itni achhi rachna ke liye badhai sweekar karein...
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना ! आपकी कल्पना बहुत सुन्दर है !
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जवाब देंहटाएंमन की गहराई से उपजी एक भावों से लबरेज शानदार कविता।
…………..
अद्भुत रहस्य: स्टोनहेंज।
चेल्सी की शादी में गिरिजेश भाई के न पहुँच पाने का दु:ख..।
हम खो गए जैसे खो जाती है
जवाब देंहटाएंआवाज़ पुकार कर थक कर हार
बहुत सुंदर रचना.
शून्य से शिखर तक फिर खुद ही सिमट आने की कहानी कहती हुई कविता अपने शब्दों/भावनाओं के साथ मन छू लेती है।
जवाब देंहटाएंसादर,
मुकेश कुमार तिवारी
वाह, बहुत अच्छी कविता.....
जवाब देंहटाएंसुंदर रचना
जवाब देंहटाएंham kho gaye hain aise
जवाब देंहटाएं.............:)
aapki kavita hi aisee hai.....:)
shaandaar!!
हम ऐसे खो गए जैसे खो जाती है बिजली
जवाब देंहटाएंचमक्रकर बस एक बार
गरजकर रह जाती है
कहीँ दूर खोहों में पहाड़ों में !
हम खो गए जैसे खो जाती है
आवाज़ पुकार कर थक कर हार !
....बहुत अच्छी रचना.
हम ऐसे खो गए जैसे खो जाती है बिजली
जवाब देंहटाएंचमक्रकर बस एक बार
गरजकर रह जाती है
कहीँ दूर खोहों में पहाड़ों में !
...............
sundar likha pragya tumne !!!!
Bahuton ke manki baat kah dee...aur badi khoobsoortee se kah dee..gumnamike andheron me rahguzar hoti rahti hai...
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