बुधवार, 2 मार्च 2011




                                                            पिता 
 मेरे बाबूजी गत 16 फरवरी को इस दुनिया से चले गए !श्री जगन्नाथ त्रिपाठी ११ फरवरी ,1930 को जन्मे  हिंदी    अंग्रेजी  भाषा के पंडित थे .भाषा
विज्ञान पर उनके लेख ,कवितायेँ गज़लें दोहे और
बहुत सा अनुवाद कार्य !उनका परिचय बहुत बड़ा है पर उन्होंने स्वयं को कभी प्रकाशित  नहीं किया !
उनके चरणों मेरी श्रद्धांजलि अर्पित है और उनको शब्दों की  यह माला अर्पित है  


पिता जब नहीं हैं लग रहा है
 वे  आसमान थे .
तब हमारे हिस्से में  छाँव  ही छांव  थी  
वे   धूप  के  नियंता  थे !
वे हमारे लिए नींद 
और  स्वप्न रचते थे .
छेनी हथौड़ी लिए समय के  अँधेरे  पर
 रोशनी की तस्वीर चुनते  थे .
पिता जब नहीं हैं लग रहा है
 वे बाजीगर थे .
स्याही और सरकंडे कोरे 
 पन्ने  जाने कहाँ से लाते थे  
 वे  हमारी पोथी और बस्ता थे.
लेकिन पिता  जाने क्यों 
 छुपकर रोते थे !
 आदि मानव की तरह या
 आसमान की तरह 
.हम भी  सदियों तक रोयेंगे
 उल्कापात में टूटी किसी  टहनी की तरह !

37 टिप्‍पणियां:

  1. लेकिन पिता जाने क्यों
    छुपकर रोते थे !
    आदि मानव की तरह या
    आसमान की तरह
    .हम भी सदियों तक रोयेंगे
    उल्कापात में टूटी किसी टहनी की तरह !

    aapki abhivyakti dil ko chhoooo gayee...
    aapke babujee ko dil se shraddhanjali..!

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  2. बाबू जी को विनम्र श्रद्धांजलि।

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  3. अपके पिता जी के लिये विनम्र श्रद्धाँजली। उनकी रचनाये हमे भी पढवायें। धन्यवाद।

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  4. हम भी सदियों तक रोयेंगे
    उल्कापात में टूटी किसी टहनी की तरह !



    पिताजी को श्रद्धांजलि मेरी भी -
    कुछ दुःख ऐसे हैं समय ही इनमे मलहम भरता है -

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  5. आपके पिताजी को विनम्र श्रद्धांजलि।

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  6. आँखें नाम करने वाली रचना है प्रज्ञा जी.....
    उन्हें मेरा भी नमन .... श्रद्धांजलि

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  7. मार्मिक याद पिता की......
    उनका स्नेह तुम्हारे साथ अवश्य रहेगा ...

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  8. आप की भाव भीनी कविता उम्दा श्रद्धांजली है.
    सलाम.

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  9. पिता जब नहीं हैं लग रहा है
    वे आसमान थे .
    hamen bhi aapke dard ka ahsaas ho raha hai....aapko sahne ki shakti mile....yahi kamna hai.

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  10. बहुत अफ़सोस हुवा जान कर आपके पिताजी के बारे में ... भगवान उनकी आत्मा को शांति दे ...
    आपने इन शब्दों में उन्हे दिल से श्रधंजलि दी है ... पिता का साया सच में ठंडी छाँव की तरह होता है ...

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  11. उनका इस तरह अचानक चले जाना ...'तत्काल की टिकट' लेकर जाने जैसा लग रहा है ...अभी भी यकीन नहीं हो रहा है प्रज्ञा ! कि 'बाबूजी' अब हमारे बीच नहीं हैं !...पिता का साया यकीनन आकाश की तरह होता है...जो अपनी संतान को धूप ,बारिश ,ठिठुरन और तूफानों से बचाकर ज़िंदगी की राह पर चलना सिखाता है ...बाबूजी तो इतने उदार थे कि मैं जब भी उनसे मिलती थी मुझे पिता से मिलकर आने का एहसास होता था,कितनी जगह थी उनके पास हमारे लिए !... भाषा के मर्मज्ञ बाबूजी आज मौन हो गए ...पर हमारी लिपियों में ,हमारी भाषा में ,हमारे स्वरों के हर निर्मिती में उनकी बताई -सिखाई चीजें मौजूद हैं ...और हमेशा रहेंगी । मेरी अश्रुपूरित श्रद्धांजलि !!!

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  12. आदरणीया प्रज्ञा पांडेय जी
    सादर प्रणाम !

    पूज्य बाबूजी को मेरी विनम्र श्रद्धांजलि !

    मैं भी अपने बाबूजी को खो चुका हूं , इसलिए इस पीड़ा से मेरा नाता है …

    एक लिंक दे रहा हुं , समय मिले तो रचना पढ़ें और सुनें भी -
    गए थे छोड़ कर इक दिन , न वापस आप घर आए !
    न क्यों फिर आप बाबूजी ! कहीं पर भी नज़र आए ?


    लेकिन सारे काम करने ही होंगे पूर्ववत् …
    बाबूजी की रचनाओं के लिए एक ब्लॉग बना कर भी कुछ किया जा सकता है …

    शुभकामनाओं सहित
    - राजेन्द्र स्वर्णकार

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  13. बाबूजी के प्रति आप सभी के नमन को मेरा ह्रदय से नमन ! सुशीला हम तुम कैसे भूल पाएंगे ! बाबूजी का ब्लॉग पहले ही बनाया था ".दृष्टि गंध उड़ चली "' उनकी ही कविता की पंक्ति लेकर. उसको पुनर्जीवित करते हैं .राजेन्द्र जी आपके सुझाव का स्वागत है !

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  14. बहुत अच्छा अति सुन्दर बस इसी तरह लगे रहिये
    http://vangaydinesh.blogspot.com/

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  15. .हम भी सदियों तक रोयेंगे
    उल्कापात में टूटी किसी टहनी की तरह !
    पिता की याद में हम सदियों तक रोयेंगे ! क्योंकि उनके साथ हमारी हंसी ख़ुशी उमंग उत्साह भी थोडा थोडा चला गया है ! वह बरगद की छाँव भी तो चली गयी है ! उल्कापात में टूटी टहनी की तरह वही तो कांपता है ,जिसके पास धीरज बंधाने वाला कोई न हो !प्रज्ञा ! पिता जी तुम्हें साहित्यिक जिम्मेदारी सौप गये हैं !तुम्हें उनकी उम्मीदों पर खरा उतरना ही होगा !उनकी फोटो क्यों नही डाली ? पिता जी को मेरी श्वेत पुष्पांजली !

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  16. पिता जब नहीं हैं लग रहा है
    वे आसमान थे .
    ____________


    सचमुच वे आसमान ही होते हैं

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  17. आपकी इस कविता से बेहतर श्रद्धांजलि क्या हो सकती है।

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  18. pragyaa ji,
    yah jaankar dukh huaa ki aapke pitaa nahi rahe.pitaa ka jaanaa jaise sab kuchh ka jaanaa hai.un par aapki likhi kavitaa padkar lagaa ki pitaa ke liye aapke bhitar kitni gahari savedanaa hai.isi tarah likhte rahe.

    ramesh sharma
    shaharnamaraigarh.blogspot.com

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  19. Bhavuk rachna .... Aap ke pita ka ashirwad aapke sath rahega... Dhanywad.. kabhi humare blog per bhi aye.. Mujhe protsahan ki jarurat hai. Naya hun na.... avinash001.blogspot.com

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  20. प्रज्ञा जी,
    जाने वाले तो चले जाते हैं केवल रह जाती हैं उनकी मधुर स्मृतियां जो हमें कभी-कभी उनके वारे में सोचने के लिए बरबस ही मजबूर कर देती हैं।आपके बाबूजी को विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए अपने बाबूजी की याद आते ही मेरी आंखे भी सजल हो उठी हैं।कामना है आपके बाबू जी का आशीर्वाद आप पर अहर्निश बना रहे।
    "इक बार तुझे अक्ल ने चाहा था भुलाना,
    सौ बार रब ने तेरी तस्बीर दिखा दी।"

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  21. आप की भाव भीनी कविता उम्दा श्रद्धांजली है.
    सलाम.

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  22. pitaa to hotaa hi hai ek svaarth heen chhaataa !
    Ulkaapaat hi hotaa hai unkaa jaanaa .lekin ye to sabke saath hotaa hai .
    svikaaron aur deti raho-kaavyaanjaliyaan ,kavtaanjali .
    veerubhai .

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  23. मन को छू गई हर एक पंक्तियां, बहुत सुंदर

    पिता जब नहीं हैं लग रहा है
    वे आसमान थे .
    तब हमारे हिस्से में छाँव ही छांव थी
    वे धूप के नियंता थे !
    वे हमारे लिए नींद
    और स्वप्न रचते थे .

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  24. बहुत ही अच्छी कविता लिखी है आपने ! आपके पिता जी को मेरी तरफ से श्रद्धांजली !
    मेरी नयी पोस्ट पर आपका स्वागत है : Blind Devotion - स्त्री अज्ञानी ?

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  25. लेकिन पिता जाने क्यों
    छुपकर रोते थे !
    आदि मानव की तरह या
    आसमान की तरह
    .हम भी सदियों तक रोयेंगे
    उल्कापात में टूटी किसी टहनी की तरह !
    sunder panktiya
    aapke pita ji ko shridhanjali
    rachana

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  26. वे हमारे लिए नींद
    और स्वप्न रचते थे .
    छेनी हथौड़ी लिए समय के अँधेरे पर
    रोशनी की तस्वीर चुनते थे .

    सचमुच बहुत शुकून मिलता है - सच कहा आपने प्रज्ञा जी - उनके प्रति विनम्र श्रद्धांजलि

    सादर
    श्यामल सुमन
    09955373288
    www.manoramsuman.blogspot.com

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  27. इस कविता को तो, एक विद्वान गुरु, मनीषी और चिंतक को उसकी शिष्या द्वारा दी गई सम्यक श्रद्धांजली कहूँगा ...ऐसी कविता लिख पाना बेटे-बेटी के बस नहीं होता!

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