बेटी और पिता
पिता के जाने काफी दिनों बाद तक मैंने उनकी तस्वीर से भी मुंह फेरा .
. उनकी यादों से भी .
.उनकी हर बात से .नाराज़ थी मैं
उनके बिना बताये जाने से !
.क्यों गए वे बिना कुछ कहे
बिना कुछ सुने
ठीक है कि उनकी उम्र हों चली थी ..
मगर मैंने तो उनके शतायु होने की की थी कामना
बार बार कहा था कि पिता आप सौ बरस तक रहेंगे हमारे साथ .
.और हम आपको अपनी अंगुली पकड़ा कर आप की मन मर्जी से दुनिया दिखायेंगे .
. और आप हमें ज़िंदगी के बारे में बताएँगे ..
यही तो बार बार कहा था मैंने .
फिर भी वे एक शाम अचानक सदा के लिए सोये
.लाख जगाया नहीं जागे
..वे बेटी कहते नहीं थकते थे
तब मेरी क्यों एक न सुनी
मैं टुहकती रही
उन्हें टेरती जब थक गयी
तब नाराज़ हों गयी
मुझे हंसाने जैसा कि वे करते थे जब नहीं आये
मैंने उनकी तस्वीर तक से मुंह फेर लिया
आकाश से उतरती बूंदों को जब धरती में खोते देखा
गीली हुई धरती पर
बीज को जब अन्कुराते देखा तब लिखी यह कविता
जबकि वे बार बार यही तो कहते रहे थे कि
अब तुम हों गयी हों बड़ी
मैं उनके जाने के बाद पहली बार बड़ी हुई
उनके अक्षर -शब्दों को जिया
और उनकी तस्वीर पर अपनी बारिश सी हंसी के फूल चढ़ाकर
उनको अपनी नादानियों से मुक्त किया!
प्रज्ञा
aaj ek lambe antraal ke baad apko padhne ka mauka mila. itni bhaavbheeni abhivyakti paish ki ki doob hi gaye aapke sath ham bhi barish si hansi me.
जवाब देंहटाएंaabhar.
मार्मिक ... कितने गहरे जज्बात ... पिता के जाने के बाद बेटी की मनोस्थिति को सार्थक किया है इन शब्दों में ... कमाल का लिखा है ...
जवाब देंहटाएंबेहद मार्मिक और संवेदनशील रचना।
जवाब देंहटाएंमार्मिक अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंओह! अश्रुपूरित कर दी आँखे आपकी इस मार्मिक
जवाब देंहटाएंहृदयस्पर्शी अभिव्यक्ति ने.
कुदरत का नियम अटल है.
मृत्यु कभी हमारे वश में नहीं हैं.
आपकी गहनतम संवेदनाओं को नमन.
मेरे ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है
उनके जाने के बाद
जवाब देंहटाएंपहली बार बड़ी हुई
उनके अक्षर -शब्दों को जिया
उनकी तस्वीर पर अपनी बारिश सी हंसी के फूल चढ़ाकर....!
......बेहद मार्मिक है..उस हंसी में आँखें नम हुई !
Bahut hi savedansheel racha.......
जवाब देंहटाएंJai hind jai haratBahut hi savedansheel racha.......
Jai hind jai harat
बहुत संवेदनशील रचना
जवाब देंहटाएंश्रद्धांजली बेहद मार्मिक है ।
जवाब देंहटाएंमार्मिक ... गहरे जज्बात .बहुत संवेदनशील रचना
जवाब देंहटाएंआँखें नम करती रचना ......
जवाब देंहटाएंmanahsthiti ka marmik chitran ...bhav vibhor kar gaya...
जवाब देंहटाएंvinamr shruddhaanjalee .
ati uttam bahut kuch darshati ye rachna...
जवाब देंहटाएंbetiyon ke liye pita hmesha pas hote hai vo khi nhi jate hai .
जवाब देंहटाएंaankhe bnd kr unhe mhsoos kr
vo yhi hau , yhi khi hai .
आँखों को सजल अनुभूति कराती अत्यंत मार्मिक प्रस्तुति - बधाई, और एक पिता को शब्द सम्मान देने के लिए आभार
जवाब देंहटाएंअनुभूतियों का अन्तह्करण से सीधा प्रवाह कविता में. अद्भुत.
जवाब देंहटाएंpalkein geeti kar gai aapki panktiyan....
जवाब देंहटाएंbahut sundar.
aabhar
Ek putri ki manobhavnaaon ka sajeev chitran kiya hae aapne.... likhte rahiye
जवाब देंहटाएंso nice post
जवाब देंहटाएंमित्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं,आपकी कलम निरंतर सार्थक सृजन में लगी रहे .
एस .एन. शुक्ल
मैं उनके जाने के बाद पहली बार बड़ी हुई
जवाब देंहटाएंअश्रु रोकना मुश्किल हो जाता है ..जब याद पिता की आती है ! अभिव्यक्ति का क्या है वह तो तरह तरह से होती है ! अच्छा हुआ कह डाला !
दिल को छू लेने वाली रचना बहुत अच्छी लगी .....
जवाब देंहटाएंएक जीवंत दास्तान की तरह है यह कविता।
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कसौटी पर शिखा वार्ष्णेय..
फेसबुक पर वक्त की बर्बादी से बचने का तरीका।
मैं क्या कहूँ , पढकर आँख में आंसू आ गए .. आज ही अपनी बेटी से कह रहा था कि जब वो ससुराल जायेंगी तो मैं कैसे रह पाऊंगा .... सच कहा आपने , पिता और बेटी का रिश्ता बहुत अनमोल है . और एक बहुत कशिश से भरी हुई है .. बेटी के मन को आपने इतनी अच्छी तरह व्यक्त किया .. आपको सलाम .
जवाब देंहटाएंबधाई !!
आभार
विजय
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कृपया मेरी नयी कविता " फूल, चाय और बारिश " को पढकर अपनी बहुमूल्य राय दिजियेंगा . लिंक है : http://poemsofvijay.blogspot.com/2011/07/blog-post_22.html
itni marmik......dil bhar gaya.
जवाब देंहटाएंdil ko chhoo lene wali rachna .
जवाब देंहटाएंshander
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