अकेली चिड़िया को जंगल में
उड़ने की ख्वाहिश हुई
पर्वत श्रृंखलाओं को
घर की दीवारों पर टांगने की ख्वाहिश हुई ..
गहन गह्वरों से उसे सपनों की आहट हुई !
खोह अन्धेरें पत्थर चालें
फिसलन और
काई की बातें उसे मालूम नहीं थीं .
हिंसक कांटें फूलों में घातें
उसे
मालूम नहीं थे !
दाना चुगती मन मन उडती
जंगल को अपना बैठी मान
उसे जंगल के राज़ मालूम थे
जंगल की शर्तें मालूम नहीं थी !
रंगीन चिड़िया जंगल की किसी डाल पर
बिना किसी हथियार के एक दिन मारी गयी !
जंगल के राज़ फिर जंगल में !
और चिड़िया की बस इतनी सी बात थी
उसे पर्वत श्रृंखलाओं को
घर की दीवारों पर टांगने की ख्वाहिश हुई !
बहुत प्रभावशाली कविता.... नारी जगत पर मंडराते खतरे को रेखांकित करती...
जवाब देंहटाएंबस..आह..!
जवाब देंहटाएंबहुत ही प्रभावपूर्ण कविता, गूढ़ विचार समाहित है इसमें. शुक्रिया.
जवाब देंहटाएंharday saprshi rachna,,
जवाब देंहटाएंjai hind jai bharat
Aah!
जवाब देंहटाएंभावपूर्ण रचना ..
जवाब देंहटाएंजंगल राज का राज़
खतरे अभी भी हैं, कविता जीती रहेगी।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर सशक्त रचना
जवाब देंहटाएंशानदार !!!
जवाब देंहटाएं"दाना चुगती मन मन उडती
जवाब देंहटाएंजंगल को अपना बैठी मान
उसे जंगल के राज़ मालूम थे
जंगल की शर्तें मालूम नहीं थी!"
बहुत ही दर्दनाक है इस कविता से गुजरना। स्त्री के लिए कितनी मुश्किलें हैं इस मर्दवादी दुनिया में। असंख्य महिलाएं, चिडि़या जितनी आजादी की कामना में मार दी जाती हैं। सच कहां भंवरी जैसे कई भंवर हैं, जो स्त्री को ले डूबते हैं।
जवाब देंहटाएंभवरी जैसे कुछ और भवंर ! कितने खतरनाक और कितने चुपके से अपनी गिरफ्त में फंसा लेते हैं ये भंवर ! व्यंग्य और दर्द की सुंदर अभिव्यक्ति है ये कविता ! क्या रूप अभिशाप होता है ? सीता जी ने भी इस रूप को धिक्कारा था ! इस कविता के लिए बधाई !
जवाब देंहटाएंachhi kavita ke liye badhayee.
जवाब देंहटाएंkrishnabihari
सशक्त, भावपूर्ण रचना.
जवाब देंहटाएंदीपोत्सव की शुभकामनायें.
सशक्त रचना!
जवाब देंहटाएंsmpoorn jgt ko aaina dikhati behd smvedansheel rchna jise bar bar mnn krne our jisse bhut kuchh seekhne ko mile .
जवाब देंहटाएंbhut khoop prgya bhut khoob .
निर्दई समाज की बारे में उस मासूम को पता नहीं था ... गहरे अर्थ लिए प्रभावी रचना है ... आज बहुत समय बाद आपके ब्लॉग पर आया ... अच्छा लगा बहुत ही ...
जवाब देंहटाएंओह! मार्मिक खूबसूरत प्रस्तुति.
जवाब देंहटाएंआभार.
मेरे ब्लॉग पर आईयेगा,प्रज्ञा जी.
behad sunder tana-bana.....
जवाब देंहटाएंबेहद प्रसंशनीय प्रस्तुति .....!
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना
जवाब देंहटाएं.बिना हथियार और बिना विचार के, जंगल में अकेली चिड़िया की तो यही नियति है ..और अगर समूह में अपनी ख्वाहिश को साँझा करके, समूह में उडती तो शायद जंगल को अपनी शर्तें बदलने के लिए मजबूर होना पड़ता..
जवाब देंहटाएंखोह अन्धेरें पत्थर चालें
जवाब देंहटाएंफिसलन और
काई की बातें उसे मालूम नहीं थीं .
हिंसक कांटें फूलों में घातें
उसे
मालूम नहीं थे !
...sach katu anubhav kahin se gujarne ke baad hi milte hain ..
bahut mamrsparshi rachna..
कविता बहुत अच्छी है.एकदम कविता जैसी.आप में अपर संभावनाएं है.उम्मीद है जल्दी ही आप जंगल और चिड़ियों के मोहपाश से मुक्त होकर शोषित,व्यथित और अन्याय-अत्याचार से पीड़ित आम आदमी पर भी नज़र डालेंगी. कामयाब होंगी.हार्दिक शुभ कामनाएं.
जवाब देंहटाएंbas itni si baat...:)
जवाब देंहटाएंbehatareeen rachna...
कुछ अलग सी लगी यह रचना ...
जवाब देंहटाएंशुभकामनायें आपको !