सोमवार, 17 अक्तूबर 2011

भवरी जैसे कुछ और भवंर


अकेली चिड़िया को जंगल में 
उड़ने की ख्वाहिश हुई 
पर्वत श्रृंखलाओं को
घर की दीवारों पर टांगने की ख्वाहिश हुई ..
गहन गह्वरों से उसे सपनों की आहट हुई !
खोह अन्धेरें पत्थर चालें 
फिसलन और 
काई की बातें उसे मालूम नहीं थीं .
हिंसक कांटें फूलों में घातें 
उसे 
मालूम नहीं थे !
दाना चुगती मन मन उडती 
जंगल को अपना बैठी मान
उसे जंगल के राज़ मालूम थे 
जंगल की शर्तें मालूम नहीं थी !
रंगीन चिड़िया जंगल की किसी डाल पर
बिना किसी हथियार के एक दिन मारी गयी !
जंगल के राज़ फिर जंगल में !
और चिड़िया की बस इतनी सी बात थी
उसे पर्वत श्रृंखलाओं को
घर की दीवारों पर टांगने की ख्वाहिश हुई !