फूल पीले मत बटोरो
झरने दो !
प्रियतम की छुवन
से खिले थे
से खिले थे
दहने दो !
प्रिय कब फिर आएंगे
कौन जानता है !
आएगा कब फिर बसंत
कौन जानता है !
अभी तो यादें पुलकी हैं
साँसों में साँसें बहती है !
आग देह में जलती
तभी सूरज भी तो
मद्धिम है
पीली है
उसकी कांति
तभी सूरज भी तो
मद्धिम है
पीली है
उसकी कांति
पूरी काली है रात
ताप को जलने दो
फूल पीले मत बटोरो
झरने दो !