गुरुवार, 21 जनवरी 2010

फूल पीले  मत बटोरो
   झरने दो !
 प्रियतम  की छुवन
 से खिले थे
 दहने दो !
प्रिय कब फिर आएंगे 
  कौन जानता है !
आएगा कब फिर   बसंत
  कौन जानता है !
अभी तो यादें  पुलकी   हैं 
साँसों में  साँसें  बहती   है !
 आग देह में जलती 
तभी सूरज भी तो 
मद्धिम है 
पीली है 
उसकी कांति
पूरी काली है   रात
 ताप  को जलने दो
फूल पीले  मत बटोरो
झरने दो !