तुम अलस्सुबह उठे होगे
तुम्हारी नींद में क्या क्या
हुआ होगा !
जानती हूँ
जल्दी में भी देर हुई होगी
एक बाल तुम्हारा
दोनों भौहों के बीच अटका होगा
टाई किस कसक के साथ पहनी होगी !
गुलाब को टहनी
तुम ने
गहरी निगाहें डाल
देखा होगा
जानती हूँ कि सुबह की चाय में
मेरी महक होगी
वह पूरे दिन तुम्हें बेचैन रखेगी
रात वह तुम्हारी नींद में होगी
और तुम चैन से सो पाओगे
जुदा बात है
कि समंदर की तरह छटपटाओगे
और बालुओं में घर बनाओगे
कहते हों कि ज़िन्दगी है थोड़ी
लाख मैं कह दूँ कि थोडा हंस लो भी
कहते हों कि पहाड़ों से होते हैं रस्ते !
कहते हों कि शहर बड़ा हैं
पर सड़कें भी कम नहीं .!
तुम तलाशते हों सघन वन
यह भी
कि तुमने समय से भिड़ने का
मन बनाया था
अब कगार पर हों !
कि तलछट में बचा है वक़्त बहुत थोडा और
तुमने कुछ स्वप्न किये थे तय !
तुम्हें
जीना था उन्हें!
वही स्वप्न खोजती हूँ
तुम्हें जानती हूँ इतना फिर भी
तुम्हारे सपनों के मारे जाने की वजहें तलाशती हूँ !!!