अब वक़्त आ गया है कि तुम उठो और अपनी ऊब को आवाज़ दो
बुधवार, 29 अप्रैल 2009
चलते समय जब ढंका था मेरा चेहरा तब मैं अपने पांव देख रही थी और देख रही थी वह ज़मीं जिस पर मेरे पांव थे तब मुझे लगा था की यह ज़मीं तो अपनी ही है दो पग की क्यों न मैं ले आऊँ पूरा आकाश वहीँ पर कुछ नहीं तो कोशिश करूँ गिर भी तो गिरूंगी अपनी ज़मीं पैर
सुन्दर क्या बात है..
जवाब देंहटाएंbahut sunder rachna hai...
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