मंगलवार, 8 सितंबर 2009



फाड़ दिया
तुम्हारा ख़त

कई टुकडे बन गए इबादत के
पढ़ते हुए
तुम्हारा ख़त

याद आई जाति बिरादरी
याद आया चूल्हा
छूत के डर से
छिपा एक कोने में
!

याद आई बाबा की
पीली जनेऊ

खींचती रेखा कलेजे में !
तुम्हारा ख़त पढ़ते हुए
याद आई
सिवान की थान
जहाँ जलता
पहला दिया हमारे ही घर से
!
याद आई झोपडी
तुम्हारी
जहाँ छीलते थे पिता
तुम्हारे
बांस
और बनाते थे खाली टोकरी !
याद

आया हमारा
भरा खेत खलिहान
!
तुम्हारा ख़त पढ़ते हुए
घनी हों गई छांव नीम की
और
याद आई
गांव की बहती नदी

जिसमें डुबाये बैठते
हम

अपने अपने पाँव
!
और बहता
एक रंग पानी का!
फाड़ दिया
तुम्हारा ख़त

कई टुकडे बन गए
इबादत के
और इबादत के कई टुकडे हुए!

28 टिप्‍पणियां:

  1. यादों की यह बारात ..........इबादत के इतने टुकड़े .............छूत के डर से छुपा चूल्हा------गज़ब!!!!!!!!!!!

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  2. जीवन के यथार्थ को अभिव्यक्त करती हुई अद्भुत कविता है....यहाँ ख़त के माध्यम से जीवन की यादों को पुनर्जीवित किया गया है.......

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  3. बहुत सुंदर है। सामाजिक भेदभाव के बीच पनपते प्रेम की शानदार अभिव्‍यक्ति है। हिंदी कविता ऐसी ईमानदार कविताओं से ही समृद्ध होगी। बहुत बहुत बधाई।

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  4. किसी नदी की अविभाज्य जल की मानिंद बहते गहरे प्रेम के बीच खड़ी होती जातिवाद की चट्टानों को संवेदानाओं में पिघलाती-बहाती सहज कविता। काश सब ऐसा सोचते ...!
    बधाई !

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  5. फाड़ दिया
    तुम्हारा ख़त
    कई टुकडे बन गए
    इबादत के
    और इबादत के कई टुकडे हुए!
    वाह ! बहुत सुंदर. ! इसी तरह अमीरी- गरीबी ,जाति धर्म ने प्रार्थनाओ के टुकड़े किये हैं !
    ढेर सारी बधाईयाँ !!!!!!!!!!!

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  6. mujhe vahi kavita achhi lagti hai jo hriday tak aasani se pahunche.yah ek sahaj aur kathya mein safal kavita hai.
    krishnabihari

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  7. aur in fate hue tukdon par dil hamara roya bahut-bahut.....!!....aapne bhi to ye maazraa....sunaya gazab....adbhut...bahut...bahut....!!

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  8. वाह
    वाह
    बहुत ख़ूब...........प्यारी अभिव्यक्ति
    बधाई !

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  9. प्रेमचंद गांधी जी नें अपनी टिप्‍पणी में जिस बात का उल्‍लेख किया है उसका समर्थक मैं भी हूं कि हिंदी कविता ऐसी ईमानदार कविताओं से ही समृद्ध होगी सचमुच में यह एक ईमानदार कविता है, सच्‍चाई बिना बनावटीपन के सीधे हृदय समाती हुई.
    जिसने भी गांवों को जिया है, कविता के शव्‍दों में उल्‍लेखित उन पलो को अक्षरश: जिया है उनके लिये तो यह उन्‍हीं की कविता है. और ... मेरे जैसे ऐसे कईयों होंगें जिन्‍हे यह कविता 'अपनी' लग रही होगी.
    मुझे बहुत पसंद आई प्रज्ञा जी आपकी यह कविता, आभार आपका इसे हम सबसे साझा करने के लिए.

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  10. Damn gud poem...sach aisa hi to hota h ladkiyo k sath...har faisla parivaar se jud jaata h...

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  11. इक तेरी बात पे क्या क्या न याद आया ...मनभावन रचना ..प्रज्ञा

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  12. सुन्दर रचना .......
    आतीत या कल्पना की छाव लिए......

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  13. और उस ख़त का हर टुकडा या फिर टुकड़े पर लिखा हर लफ्ज ऐसी ही भावपूर्ण कविता बन गया.

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  14. Excellent piece of poetry.......yes this is life and this is the way how we cope with...very realistic...

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  15. अच्छा लगा पढ़कर
    bahut hi sunder



    htttp://sanjaybhaskar.blogspot.com

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  16. जिस ख़त के पढने से याद आयी जात बिरादरी ...चूल्हा ...पीली जनेऊ ..तुम्हारी याद ...
    बहुत दुखद है इतनी सारी यादों और इबादत का टुकड़े टुकड़े होना.. मर्मस्पर्शी रचना ..!!

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  17. दिल को छू जाने वाली कविता . ऐसी कविता वही लिख सकता है जिसने जिंदगी को करीब से देखा हो ! "याद आई बाबा की
    पीली जनेऊ
    खींचती रेखा कलेजे में ! ".... फिर से स्मिरित्यों पर कई रेखाएं खींच दी !

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  18. यथार्थवादी भावपूर्ण. वधाई हो. जारी रहें.
    ---

    Till 25-09-09 लेखक / लेखिका के रूप में ज्वाइन [उल्टा तीर] - होने वाली एक क्रान्ति!

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  19. आँखें भर आयीं आपकी इस कविता को पढ़ कर..और कुछ नही कह सकता..

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  20. और
    याद आई
    गांव की बहती नदी
    जिसमें डुबाये बैठते
    हम
    अपने अपने पाँव !
    और बहता
    एक रंग पानी का!
    फाड़ दिया
    तुम्हारा ख़त
    कई टुकडे बन गए
    इबादत के
    और इबादत के कई टुकडे हुए!

    दिल कहीं खो गया आपकी ये कविता पढ़ते पढ़ते--बहुत भावनात्मक रचना।
    पूनम

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  21. इस भावः पूर्ण रचना के लिए आप को हार्दिक बधाई.

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  22. क्या बात है प्रज्ञा जी ..बहुत भावुक कर दिया कविता ने. आपके ब्लॉग पर आपसे यह पहली मुलाक़ात कभी न भूलने जैसी हो गई.

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  23. BAHOOT HI BHAAVUK RACHNA ....... MAN MEIN KAHEEN CHUBHTI HAI ..... TEES SI UTHTI HAI .... SUNDAR RACHNA SANSAAR HAI AAPKA ........

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  24. इतनी बेलाग, सहज, समझ भरी और ईमानदार कविता? और सच के कितना करीब..कैसे लिख डाली आपने? एक अच्छी कविता की खूबसूरती उसके आवरणों मे नही बल्कि आत्मा मे होती है..निःसन्देह ब्लॉगजगत की अमूल्य निधियों मे एक है यह कविता..बधाई!!

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